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व॒यं ते॑ऽअ॒द्य र॑रि॒मा हि काम॑मुत्ता॒नह॑स्ता॒ नम॑सोप॒सद्य॑। यजि॑ष्ठेन॒ मन॑सा यक्षि दे॒वानस्रे॑धता॒ मन्म॑ना॒ विप्रो॑ऽअग्ने ॥७५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

व॒यम्। ते॒। अ॒द्य। र॒रि॒म। हि। काम॑म्। उ॒त्ता॒नह॑स्ता॒ इत्यु॑त्ता॒नऽह॑स्ताः। नम॑सा। उ॒प॒सद्येत्यु॑प॒ऽसद्य॑। यजि॑ष्ठेन। मन॑सा। य॒क्षि॒। दे॒वान्। अस्रे॑धता। मन्म॑ना। विप्रः॑। अ॒ग्ने॒ ॥७५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:75


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुरुषार्थ से क्या सिद्ध करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! (उत्तानहस्ताः) उत्कृष्टता से अभय देनेहारे हस्तयुक्त (वयम्) हम लोग (ते) आपके (नमसा) सत्कार से (उपसद्य) समीप प्राप्त होके (अद्य) आज ही (कामम्) कामना को (हि) निश्चय (ररिम) देते हैं, जैसे (विप्रः) बुद्धिमान् (अस्रेधता) इधर-उधर गमन अर्थात् चञ्चलतारहित स्थिर (मन्मना) बल और (यजिष्ठेन) अतिशय करके संयमयुक्त (मनसा) चित्त से (देवान्) विद्वानों और शुभ गुणों को प्राप्त होता है और जैसे तू (यक्षि) शुभ कर्मों में युक्त हो, हम भी वैसे ही सङ्गत होवें ॥७५ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य पुरुषार्थ से पूर्ण कामनावाले हों, वे विद्वानों के सङ्ग से इस विषय को प्राप्त होने को समर्थ होवें ॥७५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुरुषार्थेन किं साध्यमित्याह ॥

अन्वय:

(वयम्) (ते) तव (अद्य) अस्मिन् दिने (ररिम) दद्मः। रा दाने लिट्। अन्येषामपि दृश्यते [अष्टा०६.३.१३७] इति दीर्घः। (हि) खलु (कामम्) (उत्तानहस्ताः) उत्तानावूर्ध्वगतावभयदातारौ हस्तौ येषां ते (नमसा) सत्कारेण (उपसद्य) सामीप्यं प्राप्य (यजिष्ठेन) अतिशयेन यष्टृ संगन्तृ तेन (मनसा) विज्ञानेन (यक्षि) यजसि (देवान्) विदुषः (अस्रेधता) इतस्ततो गमनरहितेन स्थिरेण (मन्मना) येन मन्यते विजानाति तेन (विप्रः) मेधावी (अग्ने) विद्वन् ॥७५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! उत्तानहस्ता वयं ते नमसोपसद्याद्य कामं हि ररिम, यथा विप्रोऽस्रेधता मन्मना यजिष्ठेन मनसा देवान् यजति संगच्छते, यथा च त्वं यक्षि, तथा वयमपि यजेम ॥७५ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः पुरुषार्थेनालंकामाः स्युस्ते विद्वसङ्गेनैतत् प्राप्तुं शक्नुयुः ॥७५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे पुरुषार्थाने पूर्ण कामनायुक्त बनतात ती विद्वानांच्या संगतीने शुभ गुण कर्माचा स्वीकार करण्यास समर्थ ठरतात.